Saturday, June 12, 2010
Monday, May 24, 2010
Sunday, March 21, 2010
मानवता
मनुष्य ही मनुष्य के लिए एक मात्र आशा है ।
इसलिए एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य की मदद करनी चाहिए ।
Sunday, January 31, 2010
पर्यावरण को बचाए रखने के लिए आज लोगो के पास समय नहीं है क्योकि आज प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वयं के हित के कार्यो की तरफ अग्रसर है ।
आज लोग सिर्फ पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के लिए बड़ी - बड़ी बाते करते है और प्रसासनिक अधिकारी पर्यावरण के नाम पर दस्तावेज बनाकर कूड़े के ढेर में डाल देते है ।
नेताओं के द्वारा पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के नाम पर बड़ी - बड़ी योजनाए बनाकर सरकार को दी जाती है और सरकार इन योजनाओं को लागू करके इनके आधार पर करोडो रुपये राज्य सरकारों को देती है । इनके बाद केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी ये आकड़ा लगाना सुरु कर देते है की पर्यावरण की योजनाओं की लिए जो भी पैसा आया है उसमे कितना - कितना पैसा हम लोगो को बचेगा । इस तरह पर्यावरण के नाम पर आया पैसा कर्मचारियों के खाते में चला जाता है ।
आज भारत की औधोगिक इकइयो में ६०% ऐसी इकाइय है जिनमे ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है और इन इकइयो का तरल तथा ठोस प्रदूषित मैटेरियल सीधे नदियों में बहाया जाता है और जब प्रदुषण नियंत्रण के अधिकारी इन इकइयो का सर्वेक्षण करते है तो वो मोटी रकम वसूल कर इन इकइयो को छोड़ दिया जाता है जिससे इन इकइयो को और बढावा दिया जाता है ।
इसी तरह बड़े - बड़े देश प्रदुषण नियंत्रण की बाते करते है लेकिन कोई भी देश अपनी प्रदुषण फैलाने वाली औधोगिक इकइयो को बंद नहीं करना चाहता है।
Saturday, January 16, 2010
प्रसासनिक भ्रस्टाचार
आज के समय में प्रसासनिक भ्रस्टाचार (भारत में) अपनी चरम सीमा पर है । आज अगर आप को कोई भी छोटा से छोटा काम सरकारी आफिसों से कराना है तो पहले आप रुपयों का इंतजाम करे फिर जुगाड़ लगाये तब जाकर आप का काम पूरा हो पायेगा ।
आज अगर आप को सरकारी नौकरी करना है तो आपकों पढाई के साथ - साथ रुपये और जुगाड़ का भी इंतजाम करना पड़ेगा तब आपको नौकरी मिलेगी । सरकारी दफ्तरों में ली जाने वाली रिस्वत सिर्फ एक आदमी तक ही सीमित नहीं है। यह रिस्वत एक छोटे से अधिकारी से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री तक पहुचती है ।
लेकिन इन सब परिस्थिथियो को जन्म देने वाले भी हम ही लोग है । क्योकि अगर आम जनता एक जुट होकर इन चीजो का विरोध करे तो हम इसमें काबू पा सकते है । लेकिन आने वाले समय में ये सिर्फ एक कल्पना ही रहेगी क्योकि समय के अनुसार रिस्वत का जहर हर व्यक्ति के अन्दर तेजी से फैलता चला जा रहा है । जिसका इलाज मिलाना सायद मुस्किल ही है । क्योंकि रिस्वत का जहर इतना ज्यादा फ़ैल चुका है की उसने अब कैंसर का रूप लेना सुरु कर दिया है जो की प्रत्येक व्यक्ति के खून में सामिल हो गया है।
आज अगर आप को सरकारी नौकरी करना है तो आपकों पढाई के साथ - साथ रुपये और जुगाड़ का भी इंतजाम करना पड़ेगा तब आपको नौकरी मिलेगी । सरकारी दफ्तरों में ली जाने वाली रिस्वत सिर्फ एक आदमी तक ही सीमित नहीं है। यह रिस्वत एक छोटे से अधिकारी से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री तक पहुचती है ।
लेकिन इन सब परिस्थिथियो को जन्म देने वाले भी हम ही लोग है । क्योकि अगर आम जनता एक जुट होकर इन चीजो का विरोध करे तो हम इसमें काबू पा सकते है । लेकिन आने वाले समय में ये सिर्फ एक कल्पना ही रहेगी क्योकि समय के अनुसार रिस्वत का जहर हर व्यक्ति के अन्दर तेजी से फैलता चला जा रहा है । जिसका इलाज मिलाना सायद मुस्किल ही है । क्योंकि रिस्वत का जहर इतना ज्यादा फ़ैल चुका है की उसने अब कैंसर का रूप लेना सुरु कर दिया है जो की प्रत्येक व्यक्ति के खून में सामिल हो गया है।
Tuesday, January 5, 2010
धार्मिक भ्रस्टाचार
भारत में सबसे अधिक भ्रस्टाचार जाति और धर्म के नाम पर फैलाया जाता है । जाति और धर्म के नाम पर भ्रस्टाचार फ़ैलाने में सबसे अहम भूमिका हमारे देस के राजनेता निभाते है । देस की सभी राजनीतिक पार्टिया सत्ता के लालच में आकर देस की भोली-भाली जनता में धर्म और जाति के नाम पर भ्रस्टाचार फैलाती है और फिर इसका लाभ उठाकर
सत्ता प्राप्त करके इस भ्रस्टाचार को और अधिक फैलाया जाता है । यह प्रक्रिया अंग्रेजो की उसी नीति पर आधारित है जिसके द्वारा उन्होंने भारत पर सासन किया। (फूट डालो और राजकरो) ।- लेकिन सबसे बड़ी बात यह है की समाज का हर व्यक्ति ये जानता है की यह सब चीजे गलत है फिर भी व्यक्ति यह गलती जानबूझकर करते है और करते ही जा रहे है ।
- एक उदाहरण के अनुसार हिन्दू और मुस्लिम एक दुसरे के अच्छे पड़ोसी है हर सुख-दुःख में एक दुसरे का साथ देते है लेकिन कुछ एक लोगो के बहकावे में आकर वो एक - दुसरे के कट्टर दुसमन हो जाते है।
-मै समझता हु की मनुष्य के जीवन में मानवता ही एक सबसे बड़ा धर्म है जिसके अनुसार मनुष्य को प्रेम और भाईचारे के साथ जीवन निर्वाह करना चाहिए ।
-धर्म और जाति को इस दुनिया से बहार निकलना तो नामुमकिन है लेकिन आपस में प्रेम से रहना तो हमेसा ही मुमकिन है।
Monday, January 4, 2010
SAVE THE WATER
मै देस के सभी नागरिको से प्रर्थना करता हू की देशित में जल को बचाए क्योकि पानी ईस्वर द्वारा प्रदत्त एक अमूल्य
कृति है जो मानव जीवन के लिए बहुत ही अवश्यक और महत्वपूर्ण है । देस के सभी नागरिको का यह कर्तव्य है की पानी से बचाए ।
जैसे :- सहरों में मोटर द्वारा टंकियों में पानी स्टोर किया जाता है लेकिन मैंने अधिकंस्ता ये पाया है की लोग पानी भरने के लिए मोटर चला देते है और टंकी भर जाने के बाद भी मोटर बंद नहीं करते है जिसके कारण पानी घंटो बहता रहता है जो की किसी उपयोग में नहीं आता है ।
मैंने अधिकतर ये देखा है की लोग जमीन से निकले शुद्ध पानी को घंटो तक रबड़ द्वारा जमीं पर छिडकते रहते है यह बंद होना चाहिए ।
मैंने पाया की देस की अधिकतर फैक्ट्रियों में पानी की भरी खपत होती है और बेवजह पानी नष्ट किया जाता है इसका शभी लोगो को विरोध करना चाहिए ।
पानी उपयोग सभी लोगो को अवस्यक्तानुसार करना चाहिए आवस्यकता से अधिक पानी का प्रयोग करना पानी का दुरपयोग करना है ।
पानी का दुरपयोग होने वाली मुख्य जगहे :-
- छोटे बड़े होटलों में ।
- घरो में लगी टंकियों के भर जाने पर ।
- सरकारी नालो के फटने या खुले होने पर ।
- बर्फ बनाने वाली फैक्ट्रियों में।
- सरकारी तथा प्राइवेट स्कुल कालेज विस्वविध्यालायो में ।
- सरकारी तथा प्राइवेट अस्पतालों में।
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कृति है जो मानव जीवन के लिए बहुत ही अवश्यक और महत्वपूर्ण है । देस के सभी नागरिको का यह कर्तव्य है की पानी से बचाए ।
जैसे :- सहरों में मोटर द्वारा टंकियों में पानी स्टोर किया जाता है लेकिन मैंने अधिकंस्ता ये पाया है की लोग पानी भरने के लिए मोटर चला देते है और टंकी भर जाने के बाद भी मोटर बंद नहीं करते है जिसके कारण पानी घंटो बहता रहता है जो की किसी उपयोग में नहीं आता है ।
मैंने अधिकतर ये देखा है की लोग जमीन से निकले शुद्ध पानी को घंटो तक रबड़ द्वारा जमीं पर छिडकते रहते है यह बंद होना चाहिए ।
मैंने पाया की देस की अधिकतर फैक्ट्रियों में पानी की भरी खपत होती है और बेवजह पानी नष्ट किया जाता है इसका शभी लोगो को विरोध करना चाहिए ।
पानी उपयोग सभी लोगो को अवस्यक्तानुसार करना चाहिए आवस्यकता से अधिक पानी का प्रयोग करना पानी का दुरपयोग करना है ।
पानी का दुरपयोग होने वाली मुख्य जगहे :-
- छोटे बड़े होटलों में ।
- घरो में लगी टंकियों के भर जाने पर ।
- सरकारी नालो के फटने या खुले होने पर ।
- बर्फ बनाने वाली फैक्ट्रियों में।
- सरकारी तथा प्राइवेट स्कुल कालेज विस्वविध्यालायो में ।
- सरकारी तथा प्राइवेट अस्पतालों में।
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