Sunday, January 31, 2010
पर्यावरण को बचाए रखने के लिए आज लोगो के पास समय नहीं है क्योकि आज प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वयं के हित के कार्यो की तरफ अग्रसर है ।
आज लोग सिर्फ पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के लिए बड़ी - बड़ी बाते करते है और प्रसासनिक अधिकारी पर्यावरण के नाम पर दस्तावेज बनाकर कूड़े के ढेर में डाल देते है ।
नेताओं के द्वारा पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के नाम पर बड़ी - बड़ी योजनाए बनाकर सरकार को दी जाती है और सरकार इन योजनाओं को लागू करके इनके आधार पर करोडो रुपये राज्य सरकारों को देती है । इनके बाद केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी ये आकड़ा लगाना सुरु कर देते है की पर्यावरण की योजनाओं की लिए जो भी पैसा आया है उसमे कितना - कितना पैसा हम लोगो को बचेगा । इस तरह पर्यावरण के नाम पर आया पैसा कर्मचारियों के खाते में चला जाता है ।
आज भारत की औधोगिक इकइयो में ६०% ऐसी इकाइय है जिनमे ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है और इन इकइयो का तरल तथा ठोस प्रदूषित मैटेरियल सीधे नदियों में बहाया जाता है और जब प्रदुषण नियंत्रण के अधिकारी इन इकइयो का सर्वेक्षण करते है तो वो मोटी रकम वसूल कर इन इकइयो को छोड़ दिया जाता है जिससे इन इकइयो को और बढावा दिया जाता है ।
इसी तरह बड़े - बड़े देश प्रदुषण नियंत्रण की बाते करते है लेकिन कोई भी देश अपनी प्रदुषण फैलाने वाली औधोगिक इकइयो को बंद नहीं करना चाहता है।
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